Monday 1 April 2013

कर्म


ईश्वरचन्द्र विद्यासागर कलकत्ता के बड़ा बाजार से होकर गुजर रहे थे कि रास्ते में उन्हें 14-15 वर्ष की आयु का एक लड़का मिला । नंगे पैर, फटे-पुराने कपडे और बुझा- सा चेहरा उस की हालात बताने के लिए पर्याप्त थे । उसने ईश्वरचंद्र विद्यासागर से गिड़गिड़ाते हुए कहा , ''कृपया मुझे एक आना दे दीजिए, मैं दो दिन से भूखा हूँ।'' उन्होंने उस लड़के से कहा, ''ठीक है, आज मैं तुम्हें एक आना दे दूंगा, लेकिन कल क्या करोगे ?''... ''कल मैं किसी दूसरे से मांग लूंगा ।'' लड़के ने कहा |

'' अगर चार आने दे दूं तो क्या करोगे?'' ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उससे फिर पूछा|

''उसमें से एक आने का भोजन करूंगा और शेष 3 आने के संतरे ला कर यही सड़क पर बैठ कर बेचूंगा |

?'' लड़के ने कहा ।

'' और अगर एक रुपया दे दूं तो ?

''तब फेरी लगाऊंगा ,'' लड़के ने

प्रसन्न होकर कहा ।

ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने उसे एक रूपया दे दिया। वह लड़का उस रूपए से सामान ला कर बेचने लगा । बहुत दिनों बाद एक दिन वह

अपनी दुकान पर बैठा था । तभी उसकी दृष्टि ईश्वरचंद्र विद्यासागर पर पड़ी । वह

उन्हें अपने दुकान पर ले आया और हाथ जोड़कर बोला, ''आप ने मुझ पर जो उपकार

किया था उसे मैं कभी नहीं भूल सकता। यह लीजिए, आपका रूपया ।''

ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने मुस्कराते हुए कहा, ''इस में आभार मानने की कोई जरूरत नहीं है । एक देशवासी होने के नाते यह मेरा

कर्त्तव्य था । तुम्हें मेरा वह एक रूपया देना सार्थक हुआ। अब यह रूपया तुम किसी और योग्य एवं जरूरतमंद को दे देना ।''

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