Wednesday 10 April 2013

इश्वर कहाँ


संत नामदेव अपने शिष्यों के साथ रोज की तरह धर्म चर्चा में लीन थे। तभी एक जिज्ञासु उनसे प्रश्न कर बैठा-"गुरूदेव, कहा जाता है कि ईश्वर हर जगह मौजूद है, तो उसे अनुभव कैसे किया जा सकता है? क्या आप उसकी प्राप्ति का कोई उपाय बता सकते हैं?" नामदेव यह सुनकर मुस्कराए। फिर उन्होंने उसे एक लोटा पानी और थोड़ा सा नमक लाने को कहा। वहां उपस्थित शिष्यों की उत्सुकता बढ़ गई।

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वे सोचने लगे, पता नहीं उनके गुरूदेव कौन सा प्रयोग करना चाहते हैं। नमक और पानी के आ जाने पर संत ने नमक को पानी में छोड़ देने को कहा। जब नमक पानी में घुल गया तो संत ने पूछा- "बताओ, क्या तुम्हें इसमें नमक दिख रहा है?" जिज्ञासु बोला- "नहीं गुरूदेव, नमक तो इसमें पूरी तरह घुल-मिल गया है।" संत ने उसे पानी चखने को कहा। उसने चखकर कहा- "जी, इसमें नमक उपस्थित है, पर वह दिखाई नहीं दे रहा।" अब संत ने उसे जल उबालने को कहा। पूरा जल जब भाप बन गया तो संत ने पूछा- "क्या इसमें वह दिखता है?" जिज्ञासु ने गौर से लोटे को देखा और कहा-"हां, अब इसमें नमक दिख रहा है।" तब संत ने समझाया-"जिस तरह नमक पानी में होते हुए भी दिखता नहीं, उसी तरह ईश्वर भी हर जगह अनुभव किया जा सकता है, मगर वह दिखता नहीं। जिस तरह जल को गर्म करके तुमने नमक पा लिया, उसी प्रकार तुम भी उचित तप और कर्म करके ईश्वर को प्राप्त कर सकते हो।" यह सुनकर सभी लोग संत नामदेव के प्रति नतमस्तक हो गए।

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