Tuesday 2 April 2013

क्रोधान्ध


एक दिन राजा वीर सिंह शिकार खेलते हुए घने जंगल में भटक गए. जंगल से बाहर निकलने की कोई राह न सूझ रही थी. उनके साथ उनका पालतू बाज भी था जो राह दिखाने में मदद नहीं कर पा रहा था. इस बीच राजा बहुत थक गए और प्यास से बेहाल हो गए. आस-पास पानी का कोई स्त्रोत नहीं दिख रहा था.

तभी राजा ने देखा दो चट्टानों के बीच से रिस कर पानी आ रहा था.

पानी एकत्र करने के लिए राजा ने एक प्याला वहां रख दिया. प्याला जब पानी से भर गया तब प्याला उठा कर राजा ने मुंह से लगाना चाहा. उसी समय उनके कंधे पर बैठे बाज ने चोंच मार कर वह प्याला गिरा दिया. सारा पानी बिखर गया. राजा ने प्याला फिर से भरने के लिए रिसते हुए पानी के नीचे रख दिया. दुबारा भी बाज ने पानी गिरा दिया. राजा को क्रोध आया लेकिन वह बाज उन्हें बडा प्रिय था. राजा ने फिर से प्याला पानी से भरा और पीने के लिए मुंह तक ले गया. लेकिन बाज ने फिर पानी गिरा दिया. राजा प्यास से पहले ही बेहाल था.

बाज के बार-बार पानी गिराने से वह इतना क्रोधित हो गया कि आव देखा न ताव, बाज को मार डाला. अचानक तभी राजा की निगाह चट्टान के ऊपर पड़ी. वहां एक भयंकर विषैला सर्प दबा हुआ था. उसी के ऊपर से होकर विषैला पानी रिस कर आ रहा था.

क्रोधान्ध राजा ने अपने ही प्राण रक्षक की ह्त्या कर दी थी जिसका पछतावा उसे आजीवन रहा.

ज़िंदगी की सीख :

क्रोध में लिए में लिये गए निर्णय पर अक्सर बाद में पछताना पड़ता है.

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